विक्रम साराभाई

“विक्रम साराभाई”

*एक सच्ची घटना*

1970 के दशक में तिरुवनंतपुरम में समुद्र के पास एक बुजुर्ग, *भागवत गीता* पढ़ रहे थे, तभी एक नास्तिक और होनहार नौजवान उनके पास आकर बैठा। उसने, उन पर कटाक्ष किया कि, लोग भी कितने मूर्ख हैं, विज्ञान के युग में, *गीता* जैसी ओल्ड फैशन्ड बुक पढ़ रहे हैं।

उसने, उन सज्जन से कहा कि, यदि आप यही समय विज्ञान को दे देते तो, अब तक, देश ना जाने कहाँ पहुँच चुका होता।

उन सज्जन ने, उस नौजवान से परिचय पूछा तो, उसने बताया कि, वो कोलकाता से है और विज्ञान की पढ़ाई की है। अब यहाँ भाभा परमाणु अनुसंधान में, अपना कैरियर बनाने आया है।

आगे उसने कहा कि, आप भी थोड़ा ध्यान, वैज्ञानिक कार्यो में लगाएं, *भागवत गीता* पढ़ते रहने से, आप कुछ हासिल नहीं कर सकोगे।

वे मुस्कुराते हुए जाने के लिये उठे, उनका उठना था कि, चार सुरक्षाकर्मी, वहाँ उनके आसपास आ गए।

आगे ड्राइवर ने कार लगा दी, जिस पर लाल बत्ती लगी थी, लड़का घबराया और उसने, उनसे पूछा आप कौन हैं।

उन सज्जन ने, अपना नाम बताया, *विक्रम साराभाई*,

जिस भाभा परमाणु अनुसंधान में लड़का अपना कैरियर बनाने आया था, उसके अध्यक्ष वही थे।

उस समय, विक्रम साराभाई के नाम पर, 13 अनुसंधान केंद्र थे। साथ ही, साराभाई को, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने, परमाणु योजना का अध्यक्ष भी नियुक्त किया था।

अब, शर्मसार होने की बारी लड़के की थी, वो साराभाई के चरणों मे रोते हुए गिर पड़ा, तब साराभाई ने बहुत अच्छी बात कही।

उन्होंने कहा कि, *”हर निर्माण के पीछे निर्माणकर्ता अवश्य है, इसलिए फर्क नहीं पड़ता, कि ये महाभारत है या आज का भारत, ईश्वर को कभी मत भूलो”*!!!

आज नास्तिक गण विज्ञान का नाम लेकर, कितना ही नाच लें, मगर इतिहास गवाह है कि, विज्ञान ईश्वर को मानने वाले आस्तिकों ने ही रचा है।

*ईश्वर शाश्वत सत्य है। ईश्वर की वाणी (भगवद्गीता ) सत्य है,  इसे झुठलाया कतई नहीं जा सकता। इनकी आराधना करने मात्र से संकट ज़रूर कट सकता है।*

तीन रत्न

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् |

मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा प्रदीयते ||

There are three jewels on earth: water, food, and adages. Fools, however, regard pieces of rocks as jewels.

पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं जल अन्न और अच्छे वचन । फिर भी मूर्ख पत्थर के टुकड़ों को रत्न कहते हैं .

भगवान् का अस्तित्व

“भगवान् का अस्तित्व”

एक आदमी हमेशा की तरह अपने नाई की दूकान पर बाल कटवाने गया . बाल कटाते वक़्त अक्सर देश-दुनिया की बातें हुआ करती थीं ….आज भी वे सिनेमा , राजनीति , और खेल जगत , इत्यादि के बारे में बात कर रहे थे कि अचानक भगवान् के अस्तित्व को लेकर बात होने लगी .

नाई ने कहा , “ देखिये भैया , आपकी तरह मैं भगवान् के अस्तित्व में यकीन नहीं रखता .”

“ तुम ऐसा क्यों कहते हो ?”, आदमी ने पूछा .

“अरे , ये समझना बहुत आसान है , बस गली में जाइए और आप समझ जायेंगे कि भगवान् नहीं है . आप ही बताइए कि अगर भगवान् होते तो क्या इतने लोग बीमार होते ?इतने बच्चे अनाथ होते ? अगर भगवान् होते तो किसी को कोई दर्द कोई तकलीफ नहीं होती ”, नाई ने बोलना जारी रखा , “ मैं ऐसे भगवान के बारे में नहीं सोच सकता जो इन सब चीजों को होने दे . आप ही बताइए कहाँ है भगवान ?”

आदमी एक क्षण के लिए रुका , कुछ सोचा , पर बहस बढे ना इसलिए चुप ही रहा .

नाई ने अपना काम खत्म किया और आदमी कुछ सोचते हुए दुकान से बाहर निकला और कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया. . कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे एक लम्बी दाढ़ी – मूछ वाला अधेड़ व्यक्ति उस तरफ आता दिखाई पड़ा , उसे देखकर लगता था मानो वो कितने दिनों से नहाया-धोया ना हो .

आदमी तुरंत नाई कि दुकान में वापस घुस गया और बोला , “ जानते हो इस दुनिया में नाई नहीं होते !”

“भला कैसे नहीं होते हैं ?” , नाई ने सवाल किया , “ मैं साक्षात तुम्हारे सामने हूँ!! ”

“नहीं ” आदमी ने कहा , “ वो नहीं होते हैं वरना किसी की भी लम्बी दाढ़ी – मूछ नहीं होती पर वो देखो सामने उस आदमी की कितनी लम्बी दाढ़ी-मूछ है !!”

“ अरे नहीं भाईसाहब नाई होते हैं लेकिन बहुत से लोग हमारे पास नहीं आते .” नाई बोला

“बिलकुल सही ” आदमी ने नाई को रोकते हुए कहा ,” यही तो बात है , भगवान भी होते हैं पर लोग उनके पास नहीं जाते और ना ही उन्हें खोजने का प्रयास करते हैं, इसीलिए दुनिया में इतना दुःख-दर्द है.”

धर्म के दस लक्षण

धॄति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥

धर्म के दस लक्षण हैं – धैर्य, क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना॥

ईश्वर की इच्छा

“ईश्वर की इच्छा ”

एक बौद्ध भिक्षुक भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ियाँ चुन रहा था कि तभी उसने कुछ अनोखा देखा, “कितना अजीब है ये !”, उसने बिना पैरों की लोमड़ी को देखते हुए मन ही मन सोचा .

“ आखिर इस हालत में ये जिंदा कैसे है ?” उसे आशचर्य हुआ, “ और ऊपर से ये बिलकुल स्वस्थ है ” वह अपने ख़यालों में खोया हुआ था की अचानक चारो तरफ अफरा –तफरी मचने लगी ; जंगल का राजा शेर उस तरफ आ रहा था. भिक्षुक भी तेजी दिखाते हुए एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया , और वहीँ से सब कुछ देखने लगा .

शेर ने एक हिरन का शिकार किया था और उसे अपने जबड़े में दबा कर लोमड़ी की तरफ बढ़ रहा था , पर उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया बल्कि उसे भी खाने के लिए मांस के कुछ टुकड़े डाल दिए .

“ ये तो घोर आश्चर्य है , शेर लोमड़ी को मारने की बजाये उसे भोजन दे रहा है .” , भिक्षुक बुदबुदाया,उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था इसलिए वह अगले दिन फिर वहीँ आया और छिप कर शेर का इंतज़ार करने लगा . आज भी वैसा ही हुआ , शेर ने अपने शिकार का कुछ हिस्सा लोमड़ी के सामने डाल दिया .

“यह भगवान् के होने का प्रमाण है !” भिक्षुक ने अपने आप से कहा . “ वह जिसे पैदा करता है उसकी रोटी का भी इंतजाम कर देता है , आज से इस लोमड़ी की तरह मैं

भी ऊपर वाले की दया पर जीऊंगा , इश्वर मेरे भी भोजन की व्यवस्था करेगा .” और ऐसा सोचते हुए वह एक वीरान जगह पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया .

पहला दिन बीता , पर कोई वहां नहीं आया , दूसरे दिन भी कुछ लोग उधर से गुजर गए पर भिक्षुक की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया . इधर बिना कुछ खाए -पीये वह कमजोर होता जा रहा था . इसी तरह कुछ और दिन बीत गए , अब तो उसकी रही सही ताकत

भी खत्म हो गयी …वह चलने -फिरने के लायक भी नहीं रहा .

उसकी हालत बिलकुल मृत व्यक्ति की तरह हो चुकी थी की तभी एक महात्मा उधर से गुजरे और भिक्षुक के पास पहुंचे . उसने अपनी सारी कहानी महात्मा जी को सुनाई

और बोला , “ अब आप ही बताइए कि भगवान् इतना निर्दयी कैसे हो सकते हैं , क्या किसी व्यक्ति को इस हालत में पहुंचाना पाप नहीं है ?”

“ बिल्कुल है ,”, महात्मा जी ने कहा , “लेकिन तुम इतना मूर्ख कैसे हो सकते हो ? तुमने ये

क्यों नहीं समझे की भगवान् तुम्हे उसे शेर की तरह बनते देखना चाहते थे , लोमड़ी की तरह नहीं !!!”

दोस्तों , हमारे जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि हमें चीजें जिस तरह समझनी चाहिए उसके विपरीत समझ लेते हैं. ईश्वर ने हम सभी के अन्दर कुछ न कुछ ऐसी शक्तियां दी हैं जो हमें महान बना सकती हैं , ज़रुरत हैं कि हम उन्हें पहचाने , उस भिक्षुक का सौभाग्य

था की उसे उसकी गलती का अहसास कराने के लिए महात्मा जी मिल गए पर हमें खुद भी चौकन्ना रहना चाहिए की कहीं हम शेर की जगह लोमड़ी तो नहीं बन रहे हैं.

गुणलुब्धा

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् |

वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ||

अर्थात् : अचानक ( आवेश में आ कर बिना सोचे समझे ) कोई कार्य नहीं करना चाहिए कयोंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है | ( इसके विपरीत ) जो व्यक्ति सोच –समझकर कार्य करता है ; गुणों से आकृष्ट होने वाली माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है |

फूटा घड़ा

“फूटा घड़ा”

बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था. वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था. इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था.

उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एक दम सही था. इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था. ऐसा दो सालों से चल रहा था. सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है.

फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया, उसने किसान से कहा, “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?”

“क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?”

“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ, मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है, और इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद होती रही है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा. किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला , “ कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो.”

घड़े ने वैसा ही किया, वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया, ऐसा करने से

उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा .

किसान बोला ,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस

तुम्हारी तरफ ही थे, सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था, और मैंने उसका लाभ उठाया . मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के बीज बो दिए था, तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया. आज तुम्हारी वजह से

ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ .

तुम्ही सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ?”

दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं. उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए

और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी“अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.

दया

दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि ।

एते वेदा अवेदाः स्यु र्दया यत्र न विद्यते ॥

अर्थात् : बिना दया के किये गए काम का कोई फल नहीं मिलता, ऐसे काम में धर्म नहीं होता| जहाँ दया नही होती वहां वेद भी अवेद बन जाते हैं|

ईश्वर का अस्तित्व

” ईश्वर का अस्तित्व “

एक अमीर व्यक्ति था। उसने समुद्र में तफरी के लिए एक नाव बनवाई। छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर के लिए निकल पडा। अभी मध्य समुद्र तक पहुँचा ही था कि अचानक जोरदार तुफान आया। उसकी नाव थपेडों से क्षतिग्रस्त हो, डूबने लगी, जीवन रक्षा के लिए वह लाईफ जेकेट पहन समुद्र में कुद पडा।

जब तूफान थमा तो उसने अपने आपको एक द्वीप के निकट पाया। वह तैरता हुआ उस टापू पर पहुँच गया। वह एक निर्जन टापू था, चारो और समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसने सोचा कि मैने अपनी पूरी जिदंगी किसी का, कभी भी बुरा नहीं किया, फिर मेरे ही साथ ऐसा क्युं हुआ..?

एक क्षण सोचता, यदि ईश्वर है तो उसने मुझे कैसी विपदा में डाल दिया, दूसरे ही क्षण विचार करता कि तूफान में डूबने से तो बच ही गया हूँ। वह वहाँ पर उगे झाड-पत्ते-मूल आदि खाकर समय बिताने लगा। भयावह वीरान अटवी में एक मिनट भी, भारी पहाड सम प्रतीत हो रही थी। उसके धीरज का बाँध टूटने लगा। ज्यों ज्यों समय व्यतीत होता, उसकी रही सही आस्था भी बिखरने लगी। उसका संदेह पक्का होने लगा कि इस दुनिया में ईश्वर जैसा कुछ है ही नहीं!

निराश हो वह सोचने लगा कि अब तो पूरी जिंदगी इसी तरह ही, इस बियावान टापु पर बितानी होगी। यहाँ आश्रय के लिए क्यों न एक झोपडी बना लुं..? उसने सूखी डालियों टहनियों और पत्तो से एक छोटी सी झोपडी बनाई। झोपडी को निहारते हुए प्रसन्न हुआ कि अब खुले में नहीं सोना पडेगा, निश्चिंत होकर झोपडी में चैन से सो सकुंगा।

अभी रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला, अम्बर गरजने लगा, बिजलियाँ कड‌कने लगी। सहसा एक बिजली झोपडी पर आ गिरी और आग से झोपडी धधकनें लगी। अपने श्रम से बने, अंतिम आसरे को नष्ट होता देखकर वह आदमी पूरी तरह टूट गया। वह आसमान की तरफ देखकर ईश्वर को कोसने लगा, “तूं भगवान नही , राक्षस है। रहमान कहलाता है किन्तु तेरे दिल में रहम जैसा कुछ भी नहीं। तूं समदृष्टि नहीं, क्रूर है।”

सर पर हाथ धरे हताश होकर संताप कर रहा था कि अचानक एक नाव टापू किनारे आ लगी। नाव से उतरकर दो व्यक्ति बाहर आये और कहने लगे, “हम तुम्हे बचाने आये है, यहां जलती हुई आग देखी तो हमें लगा कोई इस निर्जन टापु पर मुसीबत में है और मदद के लिए संकेत दे रहा है। यदि तुम आग न लगाते तो हमे पता नही चलता कि टापु पर कोई मुसीबत में है!

ओह! वह मेरी झोपडी थी। उस व्यक्ति की आँखो से अश्रु धार बहने लगी। हे ईश्वर! यदि झोपडी न जलती तो यह सहायता मुझे न मिलती। वह कृतज्ञता से द्रवित हो उठा। मैं सदैव स्वार्थपूर्ती की अवधारणा में ही तेरा अस्तित्व मानता रहा। अब पता चला तूं अकिंचन,निर्विकार, निस्पृह होकर, निष्काम कर्तव्य करता है। कौन तुझे क्या कहता है या क्या समझता है, तुझे कोई मतलब नहीं। मेरा संशय भी मात्र मेरा स्वार्थ था। मैने सदैव यही माना कि मात्र मुझ पर कृपा दिखाए तभी मानुं कि ईश्वर है, पर तुझे कहाँ पडी थी अपने आप को मनवाने की। स्वयं के अस्तित्व को प्रमाणीत करना तेरा उद्देश्य भी नहीं।

मेहनत

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥

अर्थात् : कोई भी काम कड़ी मेहनत से ही पूरा होता है सिर्फ सोचने भर से नहीं| कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता|

अच्छी आदत

छोटी सी अच्छी आदत

एक बर्फ बनाने की विशाल फैक्ट्री थी! हजारों टन बर्फ हमेशा बनता था ! सैकड़ों मजदूर व अन्य कर्मचारी एवं अधिकारी वहां कार्य करते थे ! उन्ही में से था एक कर्मचारी अखिलेश ! अखिलेश उस फैक्ट्री में पिछले बीस वर्षों से कार्य कर रहा था ! उसके मृदु व्यहार, ईमानदारी, एवं काम के प्रति समर्पित भावना के कारण वो उन्नति करते करते उच्च सुपरवाइजर के पद पर पहुँच गया था ! उसको फैक्ट्री के हर काम की जानकारी थी ! जब भी कोई मुश्किल घडी होती सब, यहाँ तक की फैक्ट्री के मालिक भी उसी को याद करते थे और वह उस मुश्किल पलों को चुटकियों में हल कर देता था !

इसी लिए फैक्ट्री में सभी लोग ,कर्मचारी ,व् अन्य अधिकारी उसका बहुत मान करते थे ! इन सब के अलावा उसकी एक छोटी सी अच्छी आदत और थी वह जब भी फैक्ट्री में प्रवेश करता फैक्ट्री के गेट पर तैनात सुरक्षा गार्ड से ले कर सभी अधिनिस्त कर्मचारियों से मुस्कुरा कर बात करता उनकी कुशलक्षेम पूछता और फिर अपने कक्ष में जा कर अपने काम में लग जाता !और यही सब वह जब फैक्ट्री का समय समाप्त होने पर घर पर जाते समय करता था !

एक दिन फैक्ट्री के मालिक ने अखिलेश को बुला कर कहा ” अखिलेश एक मल्टी नेशनल कम्पनी जो की आइसक्रीम बनती है ने हमें एक बहुत बड़ा आर्डर दिया है और हमें इस आर्डर को हर हाल में नीयत तिथि तक पूरा करना है ताकि कंपनी की साख और लाभ दोनों में बढ़ोतरी हो तथा और नई मल्टी नेशनल कंपनियां हमारी कंपनी से जुड़ सके ! इस काम को पूरा करने के लिए तुम कुछ भी कर सकते हो चाहे कर्मचारियों को ओवरटाइम दो बोनस दो या और नई भर्ती करो पर आर्डर समय पर पूरा कर पार्टी को भिजवाओ “अखिलेश ने कहा ठीक है में इस आर्डर को समय पर पूरा कर दूंगा ! मालिक ने मुस्कुरा कर अखिलेश से कहा “मुझे तुमसे इसी उत्तर की आशा थी” अखिलेश ने सभी मजदूरों को एकत्रित किया और आर्डर मिलाने की बात कही और कहा “मित्रो हमें हर हाल में ये आर्डर पूरा करना है इसके लिए सभी कर्मचारियों को ओवरटाइम, बोनस सभी कुछ मिलेगा साथ ही ये कंपनी की साख का भी सवाल है “! एक तो कर्मचारियों का अखिलेश के प्रति सम्मान की भावना तथा दूसरी और ओवरटाइम व बोनस मिलाने की ख़ुशी, सभी कर्मचरियों ने हां कर दी !

फैक्ट्री में दिन रात युद्धस्तर पर काम चालू हो गया !अखिलेश स्वयं भी सभी कर्मचारियों का होसला बढ़ाता हुआ उनके कंधे से कन्धा मिला कर काम कर रहा था ! उन सभी की मेहनत रंग लाइ और समस्त कार्य नीयत तिथि से पूर्व ही समाप्त हो गया ! साडी की साडी बर्फ शीतलीकरण (कोल्ड स्टोरेज) कक्ष जो एक विशाल अत्याधुनिक तकनीक से बना हुआ तथा कम्प्यूटराइज्ड था , में पेक कर के जमा कर दी गई ! सभी कर्मचारी काम से थक गए थे इसलिए उस रोज काम बंद कर सभी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गई सभी कर्मचारी अपने अपने घर की तरफ प्रस्तान करने लगे ! अखिलेश ने सभी कार्य की जांच की और वह भी घर जाने की तैयारी करने लगा जाते जाते उसने सोचा चलो एक बार शीतलीकरण कक्ष की भी जाँच कर ली जाये की सारी की सारी बर्फ पैक्ड और सही है की नहीं ,यह सोच वो शीतलीकरण कक्ष को खोल कर उसमे प्रवेश कर गया ! उसने घूम फिर कर सब चेक किया और सभी कुछ सही पा कर वह जाने को वापस मुडा ! पर किसी तकनीकी खराबी के कारण शीतलीकरण कक्ष का दरवाजा स्वतः ही बंद हो गया ! दरवाजा ऑटोमेटिक था तथा बाहर से ही खुलता था इस लिए उसने दरवाजे को जोर जोर से थपथपाया पर सभी कर्मचारी जा चुके थे उसकी थपथपाहट का कोई असर नहीं हुआ उसने दरवाजा खोलने की बहुत कोशिश की पर सब कुछ बेकार रहा ! दरवाजा केवल बाहर से ही खुल सकता था !

अखिलेश घबरा गया उसने और जोर से दरवाजे को पीटा जोर से चिल्लाया पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई ! अखिलेश सोचने लगा की कुछ ही घंटों में शीतलीकरण कक्ष का तापक्रम शून्य डिग्री से भी कम हो जायेगा ऐसी दशा में मेरा खून का जमना निश्चित है ! उसे अपनी मोत नजदीक दिखाई देने लगी !उसने एक बार पुनः दरवाजा खोलने की कोशिश की पर सब कुछ व्यर्थ रहा !कक्ष का ताप धीरे धीरे कम होता जा रहा था ! अखिलेश का बदन अकड़ने लगा ! वो जोर जोर से अपने आप को गर्म रखने के लिए भाग दौड़ करने लगा ! पर कब तक आखिर थक कर एक स्थान पर बैठ गया ! ताप शुन्य डिग्री की तरफ बढ़ रहा था !

अखिलेश की चेतना शुन्य होने लगी ! उसने अपने आप को जाग्रत रखने की बहुत कोशिश की पर सब निष्फल रहा ! ताप के और कम होने पर उसका खून जमने के कगार पर आ गया ! और अखिलेश भावना शुन्य होने लगा ! मोत निश्चित जान वह अचेत हो कर वही ज़मीन पर गिर पड़ा ! कुछ ही समय पश्चात दरवाजा धीरे से खुला ! एक साया अंदर आया उसने अचेत अखिलेश को उठाया और शीतलीकरण कक्ष से बाहर ला कर लिटाया उसे गर्म कम्बल से ढंका और पास ही पड़ा फैक्ट्री के कबाड़ को एकत्रित कर उसमे आग जलाई ताकि अखिलेश को गर्मी मिल सके और उसका रक्तसंचार सुचारू हो सके ! गर्मी पाकर अखिलेश के शरीर में कुछ शक्ति आई उसका रक्तसंचार सही होने लगा ! आधे घंटे के बाद अखिलेश के शरीर में हरकत होनेलगी उसका रक्तसंचार सही हुआ और उसने अपनी आँखे खोली !उसने सामने गेट पर पहरा देने वाले सुरक्षा गार्ड शेखर को पाया ! उसने शेखर से पुछा मुझे बाहर किसने निकला और तुम तो में गेट पर रहते हो तुम्हारा तो फैक्ट्री के अंदर कोई कार्य भी नहीं फिर तुम यहाँ कैसे आये ? शेखर ने कहा “सर में एक मामूली सा सुरक्षा गार्ड हूँ ! फैक्ट्री में प्रवेश करने वाले प्रत्येक पर निगाहे रखना तथा सभी कर्नचारियों व अधिकारियो को सेल्यूट करना ये ही मेरी ड्यूटी है ! मेरे अभिवादन पर अधिकतर कोई ध्यान नहीं देता कभी कभी कोई मुस्कुरा कर अपनो गर्दन हिला देता है !पर सर एक आप ही ऐसे इंसान है जो प्रतिदिन मेरे अभिवादन पर मुस्कुरा कर अभिवादन का उत्तर देते थे साथ ही मेरी कुशलक्षेम भी पूछते थे ! आज सुबह भी मेने आपको अभिवादन किया आपने मुस्कुरा कर मेरे अभिवादन का उत्तर दिया और मेरे हालचाल पूछे! मुझे मालूम था की इन दिनों फैक्ट्री में बहुत काम चल रहा है जो आज समाप्त हो जायेगा ! और काम समाप्त भी हो गया सभी लोग अपने अपने घर जाने लगे ! जब सब लोग दरवाजे से निकल गए तो मुझे आप की याद आई की रोज आप मेरे से बात कर के घर जाते थे पर आज दिखी नहीं दिए ! मेने सोचा शायद अंदर काम में लगे होंगे ! पर सब के जाने के बाद भी बहुत देर तक आप बहार आते दिखी नहीं दिए तो मेरे दिल में कुछ शंकाएं उत्पन्न होने लगी ! क्यों की फैक्ट्री के जाने आने का यही एकमात्र रास्ता है इसी लिए में आपको ढूंढते हुए फैक्ट्री के अंदर आ गया !

मेने आपका कक्ष देखा मीटिंग हाल देखा बॉस का कक्ष देखा पर आप कही दिखाई नहीं दिए !मेरा मन शंका से भर गया की आप कहाँ गए ?कोई निकलने का दूसर रास्ता भी नहीं है !में वापस जाने लगा तो सोचा चलो शीतलीकरण कक्ष भी देख लू ! पर वो बंद था !में वापस जाने को मुडा पर मेरे दिल ने कहा की एक बार इस शीतलीकरण कक्ष को खोल कर भी देखूं ! में आपात्कालीन चाबियाँ जो मेरे पास

रहती है ,से कक्ष खोला तो आपको यहाँ बेहोश पाया !

अखिलेश एक टक शेखर के चेहरे की और देखे जा रहा था उसने सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी एक छोटी सी अच्छी आदत का प्रतिफल उसे इतना बड़ा मिलेगा !उसकी आँखों में आंसू भर आये उसने उठ कर शेखर को गले लगा लिया !

विद्या धन

न चोराहार्यम् न च राजहार्यम्, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥

जिसे न चोर चुरा सकते हैं, न राजा हरण कर सकता है, न भाई बँटा सकते हैं, जो न भार स्वरुप ही है, जो नित्य खर्च करने पर भी बढ़ता है, ऐसा विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।