विक्रम साराभाई

“विक्रम साराभाई”

*एक सच्ची घटना*

1970 के दशक में तिरुवनंतपुरम में समुद्र के पास एक बुजुर्ग, *भागवत गीता* पढ़ रहे थे, तभी एक नास्तिक और होनहार नौजवान उनके पास आकर बैठा। उसने, उन पर कटाक्ष किया कि, लोग भी कितने मूर्ख हैं, विज्ञान के युग में, *गीता* जैसी ओल्ड फैशन्ड बुक पढ़ रहे हैं।

उसने, उन सज्जन से कहा कि, यदि आप यही समय विज्ञान को दे देते तो, अब तक, देश ना जाने कहाँ पहुँच चुका होता।

उन सज्जन ने, उस नौजवान से परिचय पूछा तो, उसने बताया कि, वो कोलकाता से है और विज्ञान की पढ़ाई की है। अब यहाँ भाभा परमाणु अनुसंधान में, अपना कैरियर बनाने आया है।

आगे उसने कहा कि, आप भी थोड़ा ध्यान, वैज्ञानिक कार्यो में लगाएं, *भागवत गीता* पढ़ते रहने से, आप कुछ हासिल नहीं कर सकोगे।

वे मुस्कुराते हुए जाने के लिये उठे, उनका उठना था कि, चार सुरक्षाकर्मी, वहाँ उनके आसपास आ गए।

आगे ड्राइवर ने कार लगा दी, जिस पर लाल बत्ती लगी थी, लड़का घबराया और उसने, उनसे पूछा आप कौन हैं।

उन सज्जन ने, अपना नाम बताया, *विक्रम साराभाई*,

जिस भाभा परमाणु अनुसंधान में लड़का अपना कैरियर बनाने आया था, उसके अध्यक्ष वही थे।

उस समय, विक्रम साराभाई के नाम पर, 13 अनुसंधान केंद्र थे। साथ ही, साराभाई को, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने, परमाणु योजना का अध्यक्ष भी नियुक्त किया था।

अब, शर्मसार होने की बारी लड़के की थी, वो साराभाई के चरणों मे रोते हुए गिर पड़ा, तब साराभाई ने बहुत अच्छी बात कही।

उन्होंने कहा कि, *”हर निर्माण के पीछे निर्माणकर्ता अवश्य है, इसलिए फर्क नहीं पड़ता, कि ये महाभारत है या आज का भारत, ईश्वर को कभी मत भूलो”*!!!

आज नास्तिक गण विज्ञान का नाम लेकर, कितना ही नाच लें, मगर इतिहास गवाह है कि, विज्ञान ईश्वर को मानने वाले आस्तिकों ने ही रचा है।

*ईश्वर शाश्वत सत्य है। ईश्वर की वाणी (भगवद्गीता ) सत्य है,  इसे झुठलाया कतई नहीं जा सकता। इनकी आराधना करने मात्र से संकट ज़रूर कट सकता है।*

तीन रत्न

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् |

मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा प्रदीयते ||

There are three jewels on earth: water, food, and adages. Fools, however, regard pieces of rocks as jewels.

पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं जल अन्न और अच्छे वचन । फिर भी मूर्ख पत्थर के टुकड़ों को रत्न कहते हैं .

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