प्रात: स्‍मरण

Pratah Smaranam || प्रात: स्‍मरण stotra ||

प्रातः स्मरण मंत्र। अर्थ, लाभ, और विधि

पौराणिक ग्रंथो, पुरातन धार्मिक ग्रंथो एवं वैदिक शास्त्रों में हर दिन की शुरुआत शुभ मंत्रो के स्मरण से होती है. प्रातः स्मरण मंत्र (Pratah Smaran Mantra) भी उन्हीं मंत्रों में से एक है. यदि प्रतिदिन इस मंत्र का नियम पूर्वक विधिवत पालन करके जाप किया जाए या श्रवण किया जाए तो निश्चित रूप से जीवन में सकारात्मकता आती है.

आईए दिन की शुरुआत में नित्य पढ़े जाने वाले प्रातः स्मरण मंत्र (Pratah Smaran Mantra) को जो आपके जीवन में सुख, यश, वैभव और धन हर तरह की समृद्धि देते है उसका अर्थ जानते है.

प्रातः स्मरण मंत्र (अर्थ सहित)।

प्रात: कर-दर्शनम्

कराग्रे वसते लक्ष्मी:, करमध्ये सरस्वती ।

कर मूले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम ॥१॥

अर्थ: प्रातः काल सबसे पहले अपने हाथों का दर्शन कीजिए. हाथों में रचित विधाता की लकीरों का दर्शन कीजिए.और इन मंत्रो का श्रवण या स्वयं इनका पाठ कीजिए.

हाथ के शीर्ष पर हथेली पर देवी लक्ष्मी का निवास है और हाथ के मध्य में सरस्वती का निवास है. हाथ के आधार पर श्री गोविन्द का निवास है. इसीलिए व्यक्ति को सुबह के समय अपने हाथों को देखना चाहिए. एवं उक्त सभी देवी देवताओं का ध्यान पूर्वक मनन करना चाहिए.

पृथ्वी क्षमा प्रार्थना

समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमंड्ले ।

विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पाद्स्पर्श्म क्षमस्वे ॥२॥

अर्थ: भूमि पर यानि पृथ्वी पर चरण रखने के समय माँ पृथ्वी से एक क्षमा प्रार्थना करें. पृथ्वी माँ का स्पर्श करके अपने माथे पर लगाएं. और इन मंत्रो को ध्यानपूर्वक पढ़े या सुने.

समुद्र जिसमे वास करते है. जिसने पर्वतों को धारण किया हुआ है. जो संसार को पोषित करने वाली है. भगवान श्री विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी जी, आपको मेरे चरणों से स्पर्श करने जा रहा हूँ. मुझे क्षमा करिएगा.

त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण

ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी

भानु: शाशी भूमिसुतो बुधश्च ।

गुरुश्च शुक्र: शनि-राहु-केतवः

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥३॥

सनत्कुमार: सनक: सन्दन:

सनात्नोप्याsसुरिपिंलग्लौ च।

सप्त स्वरा: सप्त रसातलनि

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥४॥

सप्तार्णवा: सप्त कुलाचलाश्च

सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥५॥

पृथ्वी सगंधा सरसास्तापथाप:

स्पर्शी च वायु ज्वर्लनम च तेज: नभ: सशब्दम महता सहैव

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥६॥

प्रातः स्मरणमेतद यो विदित्वाssदरत: पठेत।

स सम्यग धर्मनिष्ठ: स्यात्

संस्मृताsअखंड भारत: ॥७॥

अर्थ: हे ब्रह्मा, विष्णु (राक्षस मुरा के दुश्मन. श्रीकृष्ण या विष्णु जी), शिव (त्रिपुरासुर का अंत करने वाले श्री शिव), सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु ये सभी देवता मेरे प्रातःकाल को मंगलमय करें.

प्रातः स्मरण मंत्र (Pratah Smaran Mantra) की विधि

सुबह उठने के बाद हम कर दर्शन, भूमि वंदना एवं त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण चाहे तो सामान्य तरीके से भी कर सकते है लेकिन हर चीज़ को जब हम एक विधि से करते है तो उसका लाभ बहुत ज्यादा होता है.

ब्रम्ह मुहूर्त को आठो पहरो का राजा कहते है. ब्रम्ह वेला, मृत वेला, मधुमय सरय कहते है. इस समय प्रकृति अमृत बरसाती है. इसीलिए ऐसा कहा गया है कि “सौ दवा भौर की एक हवा”. इस समय हम परमात्मा का नाम स्मरण कर के उनसे सीधा संपर्क बना सकते है.

कर दर्शन के कुछ नियम होते है. प्रातः काल उठते ही आपको उसी जगह पर बैठ जाना है एवं दोनों हथेलियों को आपस में जोड़ कर इसका दर्शन करते हुए कर दर्शन श्लोक को बोलना है.

पृथ्वी क्षमा प्रार्थना के लिए आपको उठने के बाद प्रातः कर दर्शन के बाद पृथ्वी पर पैर रखने से पहले पृथ्वी क्षमा प्रार्थना करना है जिसमे आप विष्णु पत्नी लक्ष्मी जी से पृथ्वी को अपने पैरो से स्पर्श करने के लिए क्षमा मांगते है.

इसके बाद आप भगवान के दर्शन करें. या फिर आप अपने माता-पिता एवं बड़ों का भी दर्शन कर उनसे आशीर्वाद ले सकते है.

अब आपको त्रिदेवों के साथ नवग्रहों का स्मरण करना है. जिससे सारे नवग्रह आप पर अपना आशीर्वाद बनाए रखेंगे.

प्रातः स्मरण मंत्र (Pratah Smaran Mantra) के लाभ

इस श्लोक से धन एवं विद्या की प्राप्ति होती है.

कर्तव्य कर्म करने की प्रेरणा प्राप्त होती है.

आपका जीवन सुख, यश, वैभव एवं धन से समृद्ध होता है.

आपका स्वास्थ्य भी सुबह उठने कि वजह से अच्छा रहता है.

कर दर्शन का आशय यह भी है कि मेरी दृष्टी प्रातः काल कही और ना जाकर मेरी ही हथेलियों में देवताओं का दर्शन करें. इससे दिन भर मुझ में सुबुद्धि बनी रहें और मेरे द्वारा कोई भी बुरा कार्य ना हो.

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