प्रेरक गीत

1- हो जाओ तय्यार साथियों, हो जाओ तय्यार                                   

हो जाओ तय्यार साथियों, हो जाओ तय्यार ||

अर्पिता कर दो तन-मन-धन, मांग रहा बलिदान वतन

अगर देश के काम न आए तो जीवन बेकार || १ ||

सोचने का समय गया, उठो लिखो इतिहास नया

बंसी फेंको और उठा लो हाथो में तलवार || २ ||

तूफानी गति रुके नही, शीश कटे पर झुके नही

ताने हुए माथे के सम्मुख ठहर न पाती हार || ३ ||

काँप उठे धरती अम्बर, और उठा लो ऊंचा स्वर

कोटि कोटि कंठों से गूंजे धरम की जे जयकार || ४

2 – जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है 

जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है

जिसके वास्ते ये तन है मन है और प्राण है ॥धृ॥

ईसके कण कण में लिखा रामकृष्ण नाम है
हुतात्माओंके रुधिरसे भूमि सष्य श्याम है
धर्म का ये धाम है सदा ईसे प्रणाम है
स्वतंत्र है यह धरा स्वतंत्र आसमान है ॥१॥

ईसकी आन पर अगर जो बात कोई आ पडे
ईसके सामने जो जुल्म के पहाड हो खडे
शत्रु सब जहान हो विरुद्ध आसमान हो
मुकाबला करेंगे जब तक जान मे ये जान है ॥२॥

ईसकी गोद मे हजारो गंगा यमुना झूमती
ईसके पर्वतोंकी चोटियाँ गगन को चूमती
भूमि यह महान है निराली ईसकी शान है
ईसकी जयपताक पर लिखा विजय निशान है ॥३॥

3-जय भारती जय भारती 
जय भारती जय भारती

जय भारती जय भारती

स्वर्ग ने थी जिस तपोवन की उतारी आरती॥

ज्ञान-रवी-किरणें जहाँ फूटीं प्रथम विस्तृत भुवन में
साम्य सेवा भावना सरसिज खिला प्रत्येक मन में
मृत्यु को भी जो अमर गीता गिरा ललकारती
॥जय भारती॥

ध्यान में तन्मय जहाँ योगस्थ शिव सा है हिमालय
कर रही झंकार पारावार वीणा दिव्य अव्यय
कोटि जन्मों के अधों को जाह्नवी है तारती
॥ जय भारती॥

कंस सूदन का सुदर्शन राम के शर भीम भैरव
त्याग राणा का शिवा की नीति बंदा का समर रव
ज्वाल जौहर की शिखा जिसकी विजय उच्चारती
॥जय भारती॥

असुर-वंश-विनासिनी तू खंग खप्पर धारणी माँ
ताण्डवी उस रुद्र् की तू अट्टहास विहारिणी माँ
शत्रु-दल की मृत्यु बेला आज तुझको पुकारती
॥जय भारती॥

4-हम करें राष्ट आराधना 
हम करें राष्ट आराधना

तन से मन से धन से

तन मन धन जीवनसेहम करें राष्ट आराधना………………।।…धृ

अन्तर से मुख से कृती से
निश्र्चल हो निर्मल मति से
श्रध्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट अभिवादन…………………। १

अपने हंसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट का अर्चन……………………।२

अपने अतीत को पढकर
अपना ईतिहास उलटकर
अपना भवितव्य समझकर
हम करें राष्ट का चिंतन…।………………।३

है याद हमें युग युग की जलती अनेक घटनायें
जो मां के सेवा पथ पर आई बनकर विपदायें
हमने अभिषेक किया था जननी का अरिशोणित से
हमने शृंगार किया था माता का अरिमुंडो से

हमने ही ऊसे दिया था सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
मां जिस पर बैठी सुख से करती थी जग का शासन
अब काल चक्र की गति से वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन देकर हम करें पुन: संस्थापन………………।४

5-मुक्त हो गगन सदा स्वर्ग सी बने मही। 

मुक्त हो गगन सदा स्वर्ग सी बने मही।

संघ साधना यही राष्ट्र अर्चना यही॥

व्यक्ती व्यक्ती को जुटा दिव्य सम्पदा बढा

देशभक्ती ज्वार ला लोकशक्ति आ रही।

है स्वतंत्रता यही पूर्ण क्रान्ति है सही ॥

संघ साधना ॥१॥

भरत भूमि हिन्दु भू धर्म भूमि

मोक्ष भूअर्थ-काम सिद्घि भू विश्व में प्रथम रही

संगठित प्रयत्न से हो पुनः प्रथम वही ॥

संघ साधना ॥२॥

जाति मत उपासना प्रांत देश बोलियाँ

विविधता में एकता-राष्ट्र-मालिका बनी।

सैकड़ों सलिलि मिला गंग-धार ज्यों बही॥

संघ साधना ॥३॥

दीनता अभाव का स्वार्थ के स्वभाव का

क्षुद्र भेद भाव का लेश भी रहे नहीं।

मित्र विश्व हो सभी द्वेष-क्लेश हो नहीं॥

संघ साधना ॥४॥

नगर ग्राम बढ़ चलें प्रगति पंथ चढ़ चलें

सब समाज साथ लें कार्य-लक्ष्य एक ही।

माँ बुला रही हमें आरती बुला रही ॥

संघ साधना ॥५॥

6-हे जन्म भूमि भारत हे कर्म भूमि भारत

हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत
हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत !!
जीवन सुमन चढ़ाकर आराधना करेंगे
तेरी जनम जनम भर हम वंदना करेंगे
हम अर्चना करेंगे ……………………१

महिमा महान तू है, गौरव निधान तू है
तू प्राण है हमारी, जननी समान तू है
तेरे लिये जियेंगे, तेरे लिये मरेंगे
तेरे लिये जनम भर, हम सधना करेंगे
हम अर्चना करेंगे………।……………२

जिसका मुकुट हिमालय, जग जगमगा रहा है
सागर जिसे रतन की, अॅंजुलि चढ़ा रहा हे
वह देश है हमारा, ललकार कर कहेंगे
उस देश के बिना हम, जीवित नही रहेंगे
हम अर्चना करेंगे……………………।३

जो संस्कृति अबी तक दुर्जेय सी बनी है
जिसका विशाल मंदिर, आदर्श का धनी है
उसकी विजय-ध्वजा ले हम विश्व में चलेंगे
सुर संस्कृति पवन बन हर कुंज में बहेंगे
हम अर्चना करेंगे………………………४

शाश्वत स्वतंत्रता का, जो दीप जल रहा है
आलोक का पथिक जो, अविराम चल रहा है
विश्वास है कि पल भर, रूकने उसे न देंगे
उस दीप की शिखा को, ज्योतित सदा रखेंगे
हम अर्चना करेंगे……………………।५

7-जीना है तो गरजे जग में हिन्दु हम सब एक 
जीना है तो गरजे जग में हिन्दु हम सब एक

उलझे सुलझे प्रश्नों का है उत्तर केवल एक॥धृ॥

केशव के चिंतन दर्शन से संघटना का मंत्र सिखाया
आजीवन अविराम साधना तिल तिल कर सर्वस्व चढाया
एक दीप से जला दूसरा जलते दीप अनेक ॥१॥

भाषा भूषा मतवालों की बहुरंगी यह परम्परा
सर्व पंथ समभाव सिखाती ऋषि-मुनियोंकी दिव्य धरा
इन्द्रधनुष की छटा स्त्रोत में शुभ्र रंग है एक ॥२॥

स्नेह समर्पण त्याग हृदय में सभी दिशा में लायेंगे
समता की नवजीवन रचना हम सबको अपनायेंगे
आज समय की यही चुनौती भूले भेद अनेक ॥३॥

8-बनें हम धर्मके योगी, धरेंगे ध्यान संस्कृति का 

बनें हम धर्मके योगी, धरेंगे ध्यान संस्कृति का
उठाकर धर्मका झंडा, करेंगे उत्थान संस्कृति का ।। धृ ||
गलेमें शीलकी माला, पहनकर ज्ञानकी कफनी
पकडकर त्यागका झंडा, रखेंगे मान संस्कृति का ||१||
जलकर कष्टकी होली, ऊठाकर ईष्तकी झोली
जमाकर संतकी टोली, करें ऊत्थान संस्कृति का ||२||
हमारे जन्मका सार्थक, हमारे मोक्षका साधन
हमारे स्वर्गका साधन, करें ऊत्थान संस्कृति का ||3||

9-जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान 
जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।

प्राची की चंचल किरणों पर आया स्वर्ण विहान॥ जाग उठा…

स्वर्ण प्रभात खिला घर-घर में जागे सोये वीर
युध्दस्थल में सज्जित होकर बढ़े आज रणधीर
आज पुनः स्वीकार किया है असुरों का आह्वान॥ जाग उठा…

सहकर अत्याचार युगों से स्वाभिमान फिर जागा
दूर हुआ अज्ञान पार्थ का धनुष-बाण फिर जागा
पांचजन्य ने आज सुनाया संसृति को जयगान॥जाग उठा…

जाग उठी है वानर-सेना जाग उठा वनवासी
चला उदधि को आज बाँधने ईश्वर का विश्वासी
दानव की लंका में फिर से होता है अभियान॥।जाग उठा…

खुला शम्भु का नेत्र आज फिर वह प्रलयंकर जागा
तांडव की वह लपटें जागी वह शिवशंकर जागा
तालताल पर होता जाता पापों का अवसान॥जाग उठा…

ऊपर हिम से ढकी खड़ी हैं वे पर्वत मालाएँ
सुलग रही हैं भीतर-भीतर प्रलयंकर ज्वालाएँ
उन लपटों में दीख रहा है भारत का उत्थान॥।जाग उठा…

10-वन्दे मातरम् वन्दे मातरम् वन्दे मातरम् 

वन्दे मातरम् वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्
भारत वन्दे मातरम् जय भारत वन्दे मातरम्

रुक ना पाये तूफानो मे सबके आगे बढे कदम
जीवन पुष्प चढाने निकले माता के चरणोमे हम ॥धृ॥

मस्तक पर हिमराज विराजित उन्नत माथा माता का
चरण धो रहा विशाल सागर देश यही सुन्दरता का
हरियाली साडी पहने मा गीत तुम्हारे गाए हम ॥१॥

नदियन की पावन धारा है मंगल माला गंगा की
कमर बन्ध है विंध्याद्रि की सातपुरा की श्रेनी की
सह्याद्रि का वज्रहस्त है पौरुष को पहचाने हम ॥२॥

नही किसी के सामने हमने अपना शीश झुकाया है
जो हम से टकराने आया काल उसी का आया है
तेरा वैभव सदा रहे मा विजय ध्वजा फहराये हम ॥३॥

11-राष्ट्र की जय चेतना का गान वंदे मातरम्

राष्ट्र की जय चेतना का गान वंदे मातरम्
राष्ट्रभक्ति प्रेरणा का गान वंदे मातरम्

बंसी के बहते स्वरोंका प्राण वंदे मातरम्
झल्लरि झनकार झनके नाद वंदे मातरम्
शंख के संघोष का संदेश वंदे मातरम् ॥१॥

सृष्टी बीज मंत्र का है मर्म वंदे मातरम्
राम के वनवास का है काव्य वंदे मातरम्
दिव्य गीता ज्ञान का संगीत वंदे मातरम् ॥२॥

हल्दिघाटी के कणोमे व्याप्त वंदे मातरम्
दिव्य जौहर ज्वाल का है तेज वंदे मातरम्
वीरोंके बलिदान का हूंकार वंदे मातरम् ॥३॥

जनजन के हर कंठ का हो गान वंदे मातरम्
अरिदल थरथर कांपे सुनकर नाद वंदे मातरम्
वीर पुत्रोकी अमर ललकार वंदे मातरम् ॥४॥

12-नदिया न पिये कभी अपना जल 
नदिया न पिये कभी अपना जल,
वृक्ष न खाए कभी अपना फल ×२
अपने तन को मन को धन को
धर्म को दे दे दान रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान ×२
चाहे मिले सोना चाँदी ×२चाहे मिले रोटी बासी,महल मिले बहु सुखकारी,चाहे मिले कुटिया खालीप्रेम और संतोष भाव से,करता जो स्वीकार रेवो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान ×२
चाहे करे निन्दा कोई ×२चाहे कोई गुण गान करे,फूलों से सतकार करेकाँटों की चिन्ता न धरेमान और अपमान ही दोनोजिसे के लिये समान रेवो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान